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आज़ाद, क़ामयाब, आसमान की बुलंदियों को छूती महिलाएं… लेकिन ये तस्वीर का स़िर्फ एक पहलू है. इसका दूसरा पहलू बेहद दर्दनाक और भयावह है, जहां क़ामयाबी की राह पर आगे बढ़ना तो दूर, लाखों-करोड़ों बच्चियोेंं को दुनिया में आने से पहले ही मार दिया जाता है. तमाम तरह के क़ानून और जागरूकता अभियान के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला थमा नहीं है. पेश है, इस सामाजिक बुराई के विभिन्न पहलुओं को समेटती एक स्पेशल रिपोर्ट.

सच बहुत कड़वा है
हमारे पुरुष प्रधान समाज में आज भी बेटियों को बेटों से कमतर आंका जाता है. कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ज़्यादातर परिवारों में बेटियों के जन्म पर आज भी मायूसी छा जाती है. बेटी के जन्म पर बधाई देते हुए अक्सर लोग कहते हैं, ङ्गङ्घमुबारक हो, लक्ष्मी आई है.फफ लेकिन सच ये है कि धन रूपी लक्ष्मी आने पर सभी को ख़ुशी होती है, लेकिन बेटी रूपी लक्ष्मी के आने पर सबके चेहरे का रंग उड़ जाता है. उसे बोझ समझा जाता है. इसी मानसिकता के चलते कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा, बल्कि व़क्त के साथ बढ़ता ही जा रहा है.
शिक्षित वर्ग भी नहीं है पीछे
ऐसा नहीं है कि स़िर्फ गांव, कस्बे और अशिक्षित वर्ग में ही लड़कियों को जन्म से पहले मारने के मामले सामने आते हैं, हैरत की बात ये है कि ख़ुद को पढ़ा-लिखा और मॉडर्न कहने वाले लोग भी निःसंकोच इस जघन्य अपराध को अंजाम दे रहे हैं. कुछ मामलों में तो परिवार वाले मां की मर्ज़ी के बिना ज़बरदस्ती उसका गर्भपात करवा देते हैं. इसके अलावा छोटे परिवार की चाहत रखने वाले अधिकतर दंपति पहली लड़की होने पर हर हाल में दूसरा लड़का ही चाहते हैं, इसलिए सेक्स डिटर्मिनेशन टेस्ट करवाते हैं और लड़की होने पर एबॉर्शन करवा लेते हैं. ताज्जुब की बात ये है कि पढ़ी-लिखी और उच्च पदों पर काम करने वाली महिलाओं पर भी परिवार वाले लड़के के लिए दबाव डालते हैं.

एक प्रतिष्ठित कंपनी में एक्ज़ीक्यूटिव पद पर कार्यरत स्वाति (परिवर्तित नाम) बताती हैं, “बेटी होने की ख़बर सुनते ही मेरे ससुराल वालों के चेहरे पर मायूसी छा गई, क्योंकि सबको बेटे की आस थी. बेटी के जन्म के कुछ महीनों बाद से ही घर में बार-बार दूसरे बच्चे की प्लानिंग की चर्चा होने लगी. इतना ही नहीं, दूसरी बार भी लड़की न हो जाए इसके लिए लिंग परीक्षण कहां करवाया जाए,इस पर भी सोच-विचार होने लगा. हैरानी तो तब हुई जब मेरे पति भी दूसरी बार लड़की होने पर एबॉर्शन की बात करने लगे.”

कुछ ऐसी ही कहानी दीपिका की भी है. एचआर प्रोफेशनल दीपिका कहती हैं, “शादी के 4 साल बाद मुझे लड़की हुई, लेकिन बेटी के जन्म से घर में कोई भी ख़ुश नहीं था. उसके जन्म के 1 साल बाद ही मुझ पर दोबारा मां बनने का दबाव डाला जाने लगा, लेकिन मैं इसके लिए न तो शारीरिक रूप से तैयार थी और न ही मानसिक. उस दौरान मेरी हालत बहुत अजीब हो गई थी. घर वालों की बातें सुनते-सुनते मैं बहुत परेशान हो गई थी. मुझे समझ में नहीं आता, आख़िर लोग ये क्यों भूल जाते हैं कि लड़के को जन्म देने के लिए भी तो लड़की ही चाहिए. सब कहते हैं लड़कों से वंश आगे बढ़ता है, लेकिन लड़कियां ही नहीं रहेंगी, तो आपकी पीढ़ी आगे कैसे बढ़ेगी?”
दीपिका का सवाल बिल्कुल जायज़ है, वंश और ख़ानदान को आगे बढ़ाने के लिए लड़के जितने ज़रूरी हैं, लड़कियां भी उतनी ही अहम् हैं. ये गाड़ी के दो पहियों के समान हैं. यदि एक भी पहिया निकाल दिया जाए तो परिवार और समाज की गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाएगी, लेकिन लोग इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं. बेटे के मोह में महिलाओं का कई बार गर्भपात करवाया जाता है, बिना ये सोचे कि इसका उनके शरीर और मन पर क्या असर पड़ेगा. इतना ही नहीं, कई बार तो पांचवें-छठे महीने में भी गर्भपात करवा दिया जाता है, जिससे कई महिलाओं की जान भी चली जाती है.



Beti naam aate hi sabke chehre par khushi daud jati hai. Beti jis ghar me hoti hai wahan dukh kabhi nahi aate. Fir bhi pata nahi aaj bhi betiya ke hone par log khush nahi hote.
Beti to ghar ki shobha hoti hai. Jahan betiya ki respect hoti hai us ghar me bhagwan bhi rahte hain. Beti 2 pariwaron ko jodti hai. Agr betiya padhe to kai peedhiyan padhti hain. 
Doston betiya bachaho aur betiya bachao isse ghar aur desh sab ka vikas hoga. Betiyan sabke chehre par muskaan la deti hai. Jis ghar me betiyan nahi hain wahan sannata chaya rahta hai.
Aaj me apke liye inhi nanhi payri parion ki hindi shayari lekar aayi hun. Mujhe pura yakeen hai apko jarur pasand aayengi.